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13 Nov 2008

वार्षिक क्रीडा प्रतिस्पर्धा

१७वी क्रीडा प्रतिस्पर्धा का आयोजन १२/११/२००८ को सोहार के क्रीडा मैदान पर हुआ।

कुल ३५ विभिन्न निश्चित क्रियाओं के अतिरिक्त शिक्षक एवं अभिभावकों के मध्य आकस्मिक ही "रस्सा कस्सी" प्रतियोगिता भी आयोजित हुई। संपूर्ण कार्यक्रम सायं ५.३० तक संपन्न भी हो गया।

कार्यक्रम स्थानीय समय के अनुसार अपराहन २.३० बजे भारत व् ओमान के राष्ट्रगानों के साथ आरम्भ हुआ। तदुपरांत प्रधानाचार्य का भाषण हुआ जिसमें उन्होंने इस वर्ष की खेल कूद की पूरी गतिविधियों की जानकारी दी। मुख्य अतिथि ने चारों खंडों के विद्यार्थियों की परेड की सलामी ली।
उसके उपरांत मशाल की ज्योति प्रज्वलित हुई और उसे मैदान में घुमाया गया। ओलिम्पिक खेलों की तरह प्रतिज्ञा भी ली गई।
उसके बाद रंगारंग डांडिया नृत्य की प्रस्तुति हुई।
नन्हे-मुन्ने बच्चों के लिए तितलियों व् पेन्गुईन पक्षियों की वेशभूषा में दौड़ हुई। इस प्रतिस्पर्धा में बच्चे सुंदर वेश भूषाओं में सुसज्जित हो दौड़ रहे थे। इस तरह वेश भूषा व् दौड़ दोनों का समावेश कर दिया गया। दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए।
कक्षा १ के विद्यार्थियों ने मुद्रिका दौड़ में भाग लिया जिसमें बड़ी-बड़ी मुद्रिकाओं को एकत्र कर अन्तिम बिन्दु तक पहुंचना था।
कक्षा २ के विद्यार्थियों की तीन टांगों की दौड़ में कुछ जोड़े गिरे , कुछ लड़खडाए परन्तु दौड़ पूरी करने में सफल हुए।
अब ऐरोबिक व्यायाम को प्रस्तुत करने की बारी थी। इस प्रकार के प्रदर्शन का पहला अवसर था।
कक्षा ३ के विद्यार्थिओं ने बाल्टियों की दौड़ का खूब आनंद उठाया, उसमें एक पानी से भरी बाल्टी में से स्पंज द्वारा दूसरी रिक्त बाल्टी में पानी डालकर समाप्ति बिन्दु पर पहुंचना था।
कक्षा ४ के विद्यार्थिओं के लिए बाधा दौड़ का आयोजन हुआ।
एक उत्कृष्ट जिम्नास्टिक प्रतियोगिता का मंचन भी हुआ, इसमें कला-बाज़ी व् जलते हुए आग की गोलाकार आकृति में से कूदना शामिल था। दो जोकरों ने बीते वर्षों की सर्कस की यादें ताज़ा कर दीं।
१००, २०० मीटर, ४ गुना १०० की तेज़ दौड़ प्रतिस्पर्धाएं बालक व् बालिकाओं के विभिन्न वर्गों में विभाजित थीं -
जैसे अति - लघु, लघु , मध्यम, शीर्ष एवं अति शीर्ष। सभी प्रतियोगी कड़ी प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। उन सब ने एक परिपक्व खिलाड़ी की भावना से भाग लिया। मुझे पिएर्रे दे कुबरतें का कथन सहसा ही याद आ गया, "खेल को सिर्फ़ जीतने के लिए खेलना महत्वपूर्ण नहीं है अपितु खेल में भाग लेना अधिक महत्वपूर्ण है"। बहुत से बच्चे पिछड़ गए किंतु फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और दौड़ पूरी की। उनकी इस भावना को हम नमन करते हैं।

शारीरिक पुष्टता हमें विद्यालय के शारीरिक व्यायाम का स्मरण कराती है, इस सब के बीच व्यायाम का प्रदर्शन भी आयोजित हो गया।
अंततः चारों खंडों ने परेड का सशक्त प्रदर्शन करते हुए मुख्य अतिथि को, कदम से कदम व् सुव्यवस्थित तरीके से चलते देख टकटकी लगाकर निहारने पर मजबूर कर दिया।
मुख्य अतिथि के क्रीडा प्रतिस्पर्धा के समापन की घोषणा के उपरांत सभी सफल प्रतिस्पर्धी एवं मस्कट में अंतर्विद्यालय प्रतियोगिताओं में सोहर स्थित भारतीय विद्यालय का नाम रोशन करने वाले बच्चों को पुरुस्कृत किया गया।
बालिका प्रतिनिधि के धन्यवाद भाषण के बाद सबसे रोमांचक "रस्सा-कस्सी" का आयोजन करवाया गया, जिसमें महिला और पुरूष के दो विभिन्न दलों ने भाग लिया।

इस प्रकार भारतीय विद्यालय सोहार का एक और आकर्षक आयोजन समाप्त हुआ।

एक प्रथम चिकित्सा शिविर की उपस्थिति भी दिखी।

शिक्षक व् विद्यार्थियों दोनों के कड़े परिश्रम द्वारा ही इतना बड़ा आयोजन सम्भव था। विद्यार्थियों के अनुशासन, वाहन खड़ी करने की उचित सुविधा, अलग-अलग लोगों के लिए अलग प्रवेश द्वारों का प्रबंध एवं निर्धारित समय सीमा के भीतर ही खेलों की समाप्ति ही सबसे बड़ी सराहनीय उपलब्धि रही।

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